चांदनी

रात का वक्त है ख़ामोशी तोड़ दोबंद दरवाज़े क्यों है? ये ताले  तोड़ दो आसमान के नीचे भी जन्नत ही हैनिंदोके पेहरे है आँखोपर, सारे तोड़ दो जिन्हे निभाते गुज़र जाएगी ये जिंदगीबेवजह है वो रस्मो रिवाज़ प्यारे, तोड़ दो आंगन मै ही डेरा डाले बैठा है चांदवहां आने से रोकती सारी जंजीरे तोड दो हम बस अभी है यहाँ […]

बादशाह

बदला है मौसम या इक नया दौर चला हैहर एक टुकडा जंग का मैदान हो चला है न कोई निशां देखने वाला रहा मुस्तक़बिल मैंवो अपने ही रंग, अपना ही परचम ले चला है गुजरता गया वक्त अपनो का, अपनेपन काहर कोई खुदकाही जुलूस आगे ले चला है कहीं अपना बिलख़ रहा होगा आसपड़ोस मैंये अलग़ राहको ही सही मकाम […]

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