हिंदी कविताएं
चांदनी
रात का वक्त है ख़ामोशी तोड़ दो
बंद दरवाज़े क्यों है? ये ताले तोड़ दो
आसमान के नीचे भी जन्नत ही है
निंदोके पेहरे है आँखोपर, सारे तोड़ दो
जिन्हे निभाते गुज़र जाएगी ये जिंदगी
बेवजह है वो रस्मो रिवाज़ प्यारे, तोड़ दो
आंगन मै ही डेरा डाले बैठा है चांद
वहां आने से रोकती सारी जंजीरे तोड दो
हम बस अभी है यहाँ समझलो साथ में
बेड़ियोंसी जो लगे तो ये झांझरे तोड दो
रात बित जाएगी सुबह की राह में
आसमान से जुड़ते सारे किनारे तोड़ दो
लेकर गोंद में चांदनी खोल दो बंदिशें
न मिलने के जो है वादे हमारे तोड़ दो
रात का वक्त है ख़ामोशी तोड़ दो
बंद दरवाज़े क्यों है? ये ताले तोड़ दो
मानसी
2 thoughts on “चांदनी”
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Sundar!
Thank you 😊